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Thursday, November 11, 2010

हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के निर्णय भी अतिथि अध्यापकों के विपरीत

चण्डीगढ़: अतिथि अध्यापकों के संदर्भ में माननीय पंजाब एण्ड हरियाणा हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट कई बार उनके खिलाफ निर्णय दे चुका है परंतु सरकार की कृपादृष्टि के चलते वे पद पर बने हुए हैं। दरअसल अतिथि अध्यापकों ने दिसम्बर 2005 में अपनी नियुक्ति के तीन महीने बाद माननीय पंजाब एण्ड हरियाणा हाईकोर्ट में नियमित अध्यापकों की नियुक्ति तक न हटाने व रैगुलर के समान वेतन देने की मांग को लेकर याचिका दायर की। जिस पर बलराज सिंह व अन्य (सीडब्ल्यूपी नंबर 2743 ऑफ 2006) मामले में जस्टिस जे.एस. खेहर व जस्टिस एस.एन. अग्रवाल की खण्डपीठ ने 20-3-2006 को दिए अपने निर्णय में हरियाणा सरकार के इस जवाब पर गौर करते हुए कि नियमित अध्यापकों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, अतिथि अध्यापकों को नियमित भर्ती तक कार्य करने की इजाजत दे दी परंतु रैगुलर के समान वेतनमान की मांग को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के इस फैसले को हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 4 सितम्बर 2006 को हाईकोर्ट के आदेश पर स्थगन दे दिया परंतु सरकार ने अतिथि अध्यापकों को नहीं हटाया अपितु उनको पदों पर बनाए रखा। वर्ष 2006 में ही हाईकोर्ट की एक अन्य खण्डपीठ ने अतिथि अध्यापक सतपाल सिंह व अन्यों द्वारा उनकी सेवाएं नियमित करने को लेकर दायर की गई याचिका खारिज कर दी। इसके बाद वर्ष 2007 में अतिथि अध्यापकों ने कई याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की, जिनकी  एक साथ सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की जस्टिस आशुतोष मोहन्ता व जस्टिस टीपीएस मान की खण्डपीठ ने बलदेव सिंह व अन्य (सीडब्ल्यूपी नंबर 387 ऑफ 2007) मामले में 30 अगस्त 2007 को दिए अपने निर्णय में कहा कि अतिथि अध्यापकों को तो नियमित भर्ती तक भी काम करने का अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट के इस फैसले को अतिथि अध्यापकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया परंतु सरकार की सहृदयता से वे पद पर बने रहे। अतिथि अध्यापकों को अनुबंध पर रखने के विरोध में दलीप सिंह व अन्यों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी। जिस पर जस्टिस अजय तिवारी ने सिर्फ अतिथि अध्यापकों को ही अनुबंध देने को  संविधान की धारा 14 व 16 का उल्लंघन करार देते हुए उन्हें हटाने के आदेश पारित कर दिए। इस केस में हाईकोर्ट में दाखिल अपने लिखित जवाब में हरियाणा सरकार ने माना कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार मामले में दिए गए विस्तृत निर्णय के मद्देनजर अतिथि अध्यापकों को नियमित नहीं किया जा सकता। इसके बाद अतिथि अध्यापकों को नियमित भर्ती में अध्यापक पात्रता परीक्षा से छूट देने व साक्षात्कार में अनुभव के 24 अंक देने के सरकार के फैसले को अशोक कुमार ने (सीडब्ल्यूपी नंबर 13035 ऑफ 2009) हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिस पर कई याचिकाओं का सामुहिक निपटारा करते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मुकुल मुद्गिल व जस्टिस जसबीर सिंह  की खण्डपीठ ने 6 अप्रैल 2010 को दिए अपने निर्णय में उपरोक्त दोनों छूट रद्द कर दी तथा अतिथि अध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया को ही गलत ठहराया। अतिथि अध्यापकों के अनुबंध को 31 मार्च 2011 तक बढ़ाने के विरोध में तिलक राज ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। इस याचिका में हाईकोर्ट के आदेश पर हरियाणा सरकार द्वारा दाखिल किए गए शपथ पत्र में कहा गया कि नियमित अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया जारी है तथा नियुक्तियां होते ही अतिथि अध्यापकों को सेवामुक्त कर दिया जाएगा परंतु इस बार भी सरकार का मोह अतिथि अध्यापकों से बना हुआ है। हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में कई बार मात खाने के बावजूद भी अतिथि अध्यापक सरकार की कृपादृष्टि से अपने पदों पर बने रहे व समय-समय पर वेतनवृद्धि व अन्य लाभ हासिल कर रहे हैं। अतिथि अध्यापकों द्वारा नियमित करने की मांग पर कानूनी अड़चन के चलते हरियाणा सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। अतिथि अध्यापकों की इस गैरकानूनी मांग को लेकर उनके द्वारा किए जा रहे धरनों-प्रदर्शनों से आजिज हरियाणा सरकार का रुख भी धीरे-धीरे इनके प्रति सख्त हो रहा है। सरकार ने अतिथि अध्यापकों की नियुक्तियों में भारी गड़बडिय़ों की जांच शुरू कर अतिथि अध्यापकों की भर्ती पर प्रतिबंध लगने के बाद नियुक्त हुए अध्यापकों को बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है। इस प्रकार देर-सवेर अतिथि अध्यापकों की घर वापिसी के आसार बनते दिख रहे हैं। भले ही तात्कालिक तौर पर सभी को एक साथ बाहर ना किया जाए।


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