जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : प्रदेश सरकार की ओर से स्नातक शिक्षामित्रों को दो साल की ट्रेनिंग देकर उनकी सहायक अध्यापक पद पर स्थाई नियुक्ति करने की प्रक्रिया पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। साथ ही, इस संबंध में प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। यह फैसला न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी ने संतोष मिश्र व अन्य की याचिका पर बुधवार को सुनाया। हाईकोर्ट के इस फैसले से जहां प्रदेश के एक लाख 24 हजार स्नातक शिक्षामित्रों को तगड़ा झटका लगा है, वहीं छह लाख बीएड-बीपीएड धारकों में खुशी की लहर दौड़ गई है। याची के अनुसार शिक्षामित्रों को ट्रेनिंग देकर उनकी सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति करना नियम के विरुद्ध है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि अगर कहीं प्रशिक्षित अभ्यर्थी मौजूद हैं, तो उनके स्थान पर दूसरे की नियुक्ति नहीं की जा सकती। प्रदेश सरकार ने इसकी अनदेखी करते हुए शिक्षामित्रों को प्रशिक्षित करके उनकी स्थाई नियुक्ति करने की योजना बना डाली, जबकि प्रदेश में छह लाख बीएड-बीपीएड धारक मौजूद हैं। कोर्ट का फैसला आते ही प्रदेश के बीएड-बीपीएड धारकों में खुशी की लहर दौड़ गई। बीएड,बीपीएड बेरोजगार संघर्ष मोर्चा के जिलाध्यक्ष राजेश पांडेय ने कोर्ट के फैसले पर खुशी व्यक्त करते हुए इसे न्याय की जीत बताया। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने वोट की खातिर नियम के विरुद्ध जाकर यह निर्णय लिया था। उन्होंने कहा कि प्रदेश में प्रशिक्षित शिक्षक मौजूद हैं। इसके बाद भी सरकार लाखों रुपये खर्च करके संविदा पर काम कर रहे शिक्षामित्रों को प्रशिक्षित करने की योजना बना रही है। कोर्ट के फैसले से हमें नई ऊर्जा मिली है, जो हमें आगे की लड़ाई में सहारा देगी
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